Don't make fun of freedom of expression / अभिव्यक्ति की आजादी का न उड़े मखौल

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Don't make fun of freedom of expression

Don't make fun of freedom of expression : अभिव्यक्ति की आजादी (Freedom of expression) के नाम पर तथ्यों से खिलवाड़ की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए (Facts should not be allowed to be messed with)। कश्मीर फाइल्स फिल्म (Kashmir files movie) पर यह आरोप लगाया जाना अनुचित प्रतीत होता है कि यह फिल्म प्रोपेगंडा और वल्गर है। आखिर किसी के दुख और उसकी विपदा को फिल्मी पर्दे पर पेश करने की कोशिश किसी प्रोपेगंडा का हिस्सा कैसे हो सकती है। घाटी में देश की आजादी के बाद से ही ही रह-रहकर जो घटता आया है, उसने यहां के मूल निवासियों कश्मीर पंडितों की जिंदगी को नारकीय बना दिया। हजारों की तादाद में कश्मीर पंडितों को आतंकवाद के चलते अपनी जान गंवानी पड़ी है, लाखों की तादाद में कश्मीर पंडित देश के विभिन्न हिस्सों में रिफ्यूजी बनकर जीने को मजबूर हैं। क्या दुनिया को इसका पता नहीं चलना चाहिए कि आखिर उनके साथ क्या घटा है और अब वे किन हालात में जीने को मजबूर हैं। कश्मीर फाइल्स फिल्म इसी सच का प्रदर्शन है।

इस फिल्म को पूरे देश ने सराहा (The film was appreciated by the whole country) है और विश्व भर में इसकी सराहना (Appreciated around the world)  की गई है, हालांकि इजरायली फिल्मकार (Israeli filmmaker) और आईएफएफआई की अंतरराष्ट्रीय फिल्मों (International films) की ज्यूरी के प्रमुख नादव लैपिड (Jury chief Nadav Lapid) को कश्मीर फाइल्स में ऐसा कुछ नहीं दिखा है। आखिर उनके इस बयान को किस प्रकार से देखा जाना चाहिए। क्या वे कश्मीर फाइल्स फिल्म का विरोध कर रहे हैं या फिर पाकिस्तान का समर्थन। जिसने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद (Terrorism in Jammu and Kashmir) की फसलें पैदा करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है और आज कश्मीरी पंडित उसी की वजह से दरबदर हैं। अगर हम किसी के दुख को बांट नहीं सकते हैं तो कम से कम उसका मखौल तो नहीं उड़ाया जाना चाहिए। हालांकि गोवा में इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में उनका यह बयान कि इस फिल्म ने उन्हें परेशान कर दिया है और ऐसी फिल्म को इस प्रकार के प्रतिष्ठित फिल्म समारोह के कलात्मक व प्रतिस्पर्धा वर्ग में नहीं होना चाहिए, बेहद आपत्तिजनक (Highly objectionable) और पक्षपाती है। वास्तव में यही वास्तविकता है कि कश्मीर का सच उजागर होना दुनियाभर के उन देशों को हजम नहीं हो रहा, जोकि पाकिस्तान के प्रति हमदर्दी रखते हैं। हालांकि इजरायल भारत का पुराना मित्र है और हालिया वर्षों में दोनों देशों के बीच मित्रता के नए दौर की शुरुआत हुई है।

यही वजह है कि इजरायल के दूतावास (Embassy of Israel) ने तुरंत नुकसान की भरपाई शुरू की और उन्होंने जहां फिल्मकार नदव लैपिड की आलोचना की वहीं भारत से इस बयान के लिए माफी भी मांगी। इजरायली राजदूत बखूबी समझते हैं कि इस समय भारत दुनिया में क्या हैसियत रख रहा है और उसके साथ चलने में क्या फायदा है और उसके उलट होने में क्या नुकसान। इजरायल स्वयं ऐसे हालात से दोचार हो रहा है, जब उसके आसपास विरोधियों की भीड़ है। ऐसे में एक फिल्मकार की सोच और विचार चाहे कुछ भी हों, लेकिन इजरायल सरकार का नजरिया भारत और उसके लोगों के प्रति सकारात्मक है। इजरायली राजदूत ने तो यहां तक कहा कि भारतीय संस्कृति में अतिथि को भगवान मानने की परंपरा है, लेकिन फिल्मकार नदव लैपिड ने इस परंपरा का असम्मान और आतिथ्य का दुरुपयोग किया है।  

हालांकि यह विचित्र समय है, जब सही को सही कहने का साहस खत्म होता जा रहा है। एक फिल्म जोकि सच पर आधारित है और उसमें किसी की पीड़ा का प्रदर्शन है, उसके फिल्मकार को अगर कोई नापसंद कर रहा है तो वह विषय भी नापसंद कर दिया जाता है, जिस पर वह बनी है। इस मामले मेें भी यही हो रहा है। दो पक्ष बन चुके हैं, एक वह है जोकि इजरायली फिल्मकार (Israeli filmmaker) का समर्थन कर रहा है, दूसरा वह है जोकि कश्मीर फाइल्स के रचनाकारों का समर्थन कर रहा है। वास्तव में यह कहना क्या सही है कि यह फिल्म गलत तथ्यों पर आधारित है और इसे वल्गर बताया गया है। आखिर किस तरह से एक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह (International film festival) के मंच पर एक फिल्म, उसके विषय, उसके कलाकारों का अपमान कर दिया जाता है और इसकी आलोचना तक नहीं होनी चाहिए। यह अपने आप में बेहद शर्मनाक है।  

यह समझे जाने की जरूरत है कि अभिव्यक्ति की आजादी (Freedom of Expression) किसी के अधिकार और स्वतंत्रता का हनन नहीं होनी चाहिए। अभी बीते दिनों ही फिल्म अभिनेत्री ऋचा चड्ढा ने भारतीय सेना के एक अधिकारी की ओर से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (Pakistan Occupied Kashmir) को वापस भारत से जोडऩे के बयान का सोशल मीडिया पर मजाक उड़ाया था। उस ट्वीट को लेकर भी दो पक्ष सामने आए थे, बाद में अभिनेत्री ने बेशक अपने ट्वीट के लिए माफी मांग ली, लेकिन उनके इस कृत्य से भारतीय सेना का अपमान जरूर हुआ है। क्या भारतीय सेना के संबंध में ऐसे अपमानजनक, घटिया ट्वीट (Abusive tweet) किए जाने जरूरी हैं। भारतीय सेना (Indian Army) की वजह से देश से की सीमाएं सुरक्षित हैं और वह दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश है। हमें अपने विचारों पर नियंत्रण अवश्य करना आना चाहिए जोकि आज के समय में समाप्तप्राय हो चुका है। अब फिल्मकार, अभिनेता अपनी आवाज को मुखरता से रख रहे हैं, लेकिन बगैर सोचे-समझे। समय की मांग यह है कि ऐसे बयानों, बातों को विचार करके जाहिर किया जाए। 

 

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